ऑपरेशन सिंदूर नाम में ही इतना पावर है कि इसके सामने कोई भी राक्षस नहीं टिकता- वरिष्ठ लेखिका 'माण्डवी सिंह'
काली तारीख 22 अप्रैल 2025 पहलगाम के बैसरन घाटी में जो चार-पांच आतंकवादी आए थे जिन्होंने हिंदू-मुस्लिम पूछ कर मारा, जिन्होंने नई नवेली दुल्हनों के सामने उनके शरीके-हयात को कत्लेआम किया, जिन्होंने नई नवेली दुल्हनों के मांग के सिंदूर उजाड़े, जिन्होंने पहलगाम में हिंदुओं की पैंट उतरवायी, जिन्होंने भारत की हिंदू बेटियों से कहा कि जाकर मोदी को बता देना, क्या वो चार-पांच आतंकवादी मारे गए?ऑपरेशन सिंदूर तो स्पेशली उन्हीं नपुंसक आतंकवादियों के लिए ऑर्गेनाइज किया गया था।ऑपरेशन सिंदूर में कंधार हाईजैक का आतंकवादी महफूज अजहर मारा गया बहुत अच्छा हुआ, 26/11 मुंबई ताज में हुए आतंकवादी घटना का आतंकवादी अकाशा मार गया बहुत अच्छा हुआ है, पुलवामा अटैक के भी कुछ आतंकवादी मारे गए ये भी बहुत अच्छा हुआ, मकसूद अजहर का पूरा परिवार ऑपरेशन सिंदूर में मारा गया यह भी बहुत अच्छा हुआ,पाकिस्तान में पोषित और भी तमाम गिरोह के आतंकवादी मारे गए यह भी बहुत अच्छा हुआ,पर मेरा एक ही सवाल है और सवाल यह है की पहलगाम के बैसरन घाटी में आए वह चार-पांच आतंकवादी जिन्होंने नई नवेली दुल्हनों के मांग का सिंदूर उजाड़ दिया, बूढ़े मां बाप के इकलौते सहारे विजय करनवाल, शुभम द्विवेदी जो अपने मां बाप के बुढ़ापे के इकलौते मात्र सहारे थे उन्हें गोलियों से भून डाला, उन चार-पांच आतंकवादियों का क्या हुआ? उनके मरने की पुष्टि अभी तक नहीं हुई, क्यों ?
ऑपरेशन सिंदूर इन्हीं पांच आतंकवादियों के लिए execute किया गया था। फिर ऑपरेशन सिंदूर सफल कहां हुआ? भारत को अगर युद्ध विराम में अपनी सहमति जतानी ही थी तो "Act of war" के साथ-साथ पाकिस्तान के सामने यह भी शर्त रखनी थी कि हमें वह पांच आतंकवादी ला करके दे दो "जिंदा या मुर्दा" जिन्होंने ऑपरेशन सिंदूर को जन्म दिया, जिन्होंने यह कहा कि मोदी को जाकर बता देना, जिन्होंने हिंदू-मुस्लिम पूछ कर मारा, जिन्होंने बूढ़े मां-बाप के बुढ़ापे की लाठी इकलौते सहारे को छीन लिया। भारत को उन आतंकवादियों को पाकिस्तान से सशर्त मांगना चाहिए था, उन पांचों आतंकवादियों को 72 हुरो की यात्रा पर भेजना चाहिए था,जिन्होंने बैसरन घाटी में मौत का तांडव खेला। वो आतंकवादी अभी भी जिंदा है मोदी जी, फिर ऑपरेशन सिंदूर कैसे सफल माना जाए? हमारे हिंदू बेटियों के सिंदूर का कहां हिसाब हुआ? बूढ़े मां बाप को कहां न्याय मिला? ऑपरेशन सिंदूर" के तहत पाकिस्तान में तबाही हुई, कुछ आतंकवादी मारे गए, यह बातें मन को मनाने के लिए अच्छी हैं, किंतु इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी बीमारी की जड़ हमने शरीर के अंदर ही छोड़ दी, यह अच्छी बात नहीं है मोदी जी। जड़ है तो कभी भी नासूर बन जाएगा और जब यह बीमारी दोबारा पैदा होगी तो और भी भयानक रूप लेगी,इसका समूल नाश जरुरी था, हम इस बार भी इतनी मजबूत स्थिति में होने के बावजूद भी इन जिहादियों का समूल नाश करने में असफल रहे।
चूंकि मैं मिलिट्री साइंस की छात्रा रही हूं हमारा एक पेपर हुआ करता था ऐतिहासिक युद्ध जिसमें "मंडल सिद्धांत" का जिक्र है मंडल सिद्धांत के अंदर हमें कई चीजें युद्ध के बारे में देखने और पढ़ने को मिली। उसी के अंतर्गत जब कौटिल्य को हमने पढ़ा तो उनके एक घटना का जिक्र पाया जो यहां साझा करना चाहूंगी एक बार कौटिल्य तक्षशिला के रास्ते से गुजर रहे थे अचानक उनके पैर में एक कांटा चुभ गया उन्होंने कांटे को निकालने की बहुत कोशिश की पर वह नहीं निकला फिर उन्होंने उस कांटे के पेड़ की जड़ में प्रतिदिन मट्ठे में चीनी मिलाकर डालना शुरू कर दिया रास्ते से आने जाने वाले व्यक्ति प्रतिदिन कौटिल्य को ऐसा करते देखते थे एक दिन एक व्यक्ति ने पूछा की महाशय आप इस कांटे की जड़ में प्रतिदिन मट्ठा और चीनी क्यों डालते हैं? तो कौटिल्य ने अपना पैर दिखाते हुए कहा की इस पेड़ का कांटा उनके पैर में चूभ गया है फिर उस व्यक्ति ने कहा तो आप पैर से कांटे को निकाल दीजिए बात खत्म हो जाएगी पर आप अपने पैर में कांटा न निकाल कर जिस कांटे ने आपको तकलीफ दिया आप उसमें मट्ठा और चीनी डाल रहे हैं, ऐसा क्यों? तब कौटिल्य ने समझाया कि मैं अपने पैर का कांटा निकाल कर फेंक दूंगा लेकिन अगर यह कांटे का पेड़ जिंदा रहेगा तो इसे फिर किसी के पैर में जाकर चुभेगा और मैं मट्ठा चीनी इसीलिए इसमें डाल रहा हूं कि इस कांटे के जड़ तक मट्ठे और चीनी के माध्यम से चीटियां जाएंगी और इस कांटे के पेड़ को जड़ से नष्ट कर देंगी इस कांटे के पेड़ का अस्तित्व हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगा। फिर यह किसी के पैर में कभी नहीं चुभेगा।
कहानी का सार यह है कि जो चीज आपको बार-बार तकलीफ देती है उसे जड़ से उखाड़ फेंकना चाहिए। चाणक्य ने नंद वंश के अंतिम शासक घनानंद को चंद्रगुप्त मौर्य के माध्यम से इसी विधि से उखाड़ फेंका था। कहानी में चाणक्य का गुस्सा और दर्द, और फिर उनकी दूरदर्शिता और नीति का पालन देखने को मिलता है। मुझे लगता है मोदी जी को इस चाणक्य नीति को अपनाना चाहिए था,और जिस आतंकवाद से हमें बार-बार दर्द और पीड़ा मिली है, ऑपरेशन सिंदूर के माध्यम से उसका जड़ से समूल नाश करना चाहिए था। पर फिर हम इस बार चूक गए। पाकिस्तान की करनी और कथनी में जमीन आसमान का अंतर है ये हमसे छिपा नहीं है, इसकी क्या गारंटी है की फिर भारत में आतंकवादी घटनाएं नहीं होगी? फिर पाक परस्त आतंकवाद भारत में एक बार फिर अपने पैर नहीं पसारेगा? ऑपरेशन सिंदूर नाम में ही इतना पावर और तेज है कि इसके सामने कोई भी राक्षस टिकता नहीं।
भारत सती- सावित्रियों का देश रहा है, जब-जब भारतीय नारियों के सिंदूर पर विपत्ति आई है भारत की नारियां यमराज तक से लड़ गई हैं यमराज तक को विवश कर दिया है उनके सिंदूर को लौटाने के लिए, तो भला यह तुच्चे आतंकवादियों की क्या औकात थी जो सिंदूर के सामने टिक जाते, इस बार ऑपरेशन सिंदूर के कुंड में इन सारे आतंकवादियों को स्वाहा करना था,खासकर उन 5 आतंकवादियों को जिन्होंने पहलगाम के बैसरन घाटी में नई नवेली भारत की बेटियों के सिंदूर उजाड़े। पर आज भी वह सिंदूर उजाड़ने वाले पांच आतंकवादी इतना विध्वंस होने के बावजूद भी जीवित बचे हुए हैं, हम ऑपरेशन सिंदूर के टारगेट को पूर्ण रूप से सेट करने में नाकाम रहे। ऑपरेशन सिंदूर के पूरे सिनेरियो पर जब मैं नजर डालती हूं तो पाती हूं की ऑपरेशन सिंदूर ऐसे रह गया मानो जिस तरह से एक तलाकशुदा स्त्री सिंदूर का सिंधोरा तो अपने पास रखती है पर उस सिंधोरे का सिंदूर ना अपने माथे में सजा सकती है, ना उस सिंदूर के सिंधोरा को जल में प्रवाहित कर सकती है।ऑपरेशन सिंदूर बिखर गया, लक्ष्य विहीन हो गया।
-माण्डवी सिंह शिक्षिका,'वरिष्ठ लेखिका'
कुशीनगर,उत्तर प्रदेश
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Sub Editor
3 years experience in digital media. Home district Sitapur Uttar Pradesh. Primary education Saraswati Vidya Mandir Sitapur. Graduation Lucknow University.
