ओवैसी के बदले सुर ? मुस्लमान और RSS समंदर के दो किनारे
AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी एक बार फिर 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ' और उनके प्रमुख मोहन भागवत पर तीखा हमला बोलते नजर आ रहे हैं। उन्होंने मोहन भागवत के मुसलमानों को लेकर दिए गए हालिया बयान को "पाखंडी और बेमानी" करार देते हुए कहा है कि ऐसे बयान केवल दिखावे के लिए होते हैं और इनका असली मकसद भारत की बहुलतावादी संस्कृति को कमजोर करना है। ओवैसी का कहना है "अगर भागवत वाकई मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाने वालों से सहमत नहीं हैं, तो वो खुलकर कार्रवाई क्यों नहीं करते?" उन्होंने आरोप लगाया कि RSS की विचारधारा ही देश को एक धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र से हिंदू राष्ट्र की ओर धकेल रही है।
ओवैसी ने भागवत के मुस्लिम नेताओं से मिलने-जुलने को भी एक “राजनीतिक छलावा” बताया। इसी दौरान ओवैसी ने BJP की लगातार चुनावी जीत पर भी अपनी बात रखी। उनका साफ कहना है कि BJP की सफलता उनकी पार्टी या मुस्लिम वोटों की वजह से नहीं, बल्कि विपक्ष की नाकामी और हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण की वजह से है। उन्होंने कहा- अगर मैं कुछ सीटों पर चुनाव लड़ता हूं! और BJP 240 सीटें जीतती है, तो इसमें मेरा क्या दोष? विपक्ष मजबूत होता, तो नतीजे अलग होते।
विपक्षी दलों पर पलटवार करते हुए ओवैसी ने आरोप लगाया कि ये पार्टियां मुसलमानों को सिर्फ वोट बैंक की तरह देखती हैं, लेकिन उनके असली मुद्दे शिक्षा, रोजगार और राजनीतिक भागीदारी पर कोई ध्यान नहीं देतीं। ओवैसी ने आगे तीखा सवाल करते हुए कहा, "यादव नेता बन सकते हैं, ऊंची जातियों के लोग बन सकते हैं, तो मुसलमान क्यों नहीं? क्या मुसलमान सिर्फ भीख मांगने के लिए हैं? उनका कहना है कि भारत अगर 2047 तक विकसित राष्ट्र बनना चाहता है, तो देश के इतने बड़े समुदाय को हाशिए पर नहीं रखा जा सकता।इसके साथ ही, ओवैसी ने हाल में चल रहे मंदिर-मस्जिद विवादों पर भी अपनी प्रतिक्रिया दी है!
ओवैसी ने कहा कि ये विवाद 1991 के पूजा स्थल कानून का उल्लंघन हैं, और इन्हें RSS समर्थकों द्वारा जानबूझकर उभारा जा रहा है , ताकि देश के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को खत्म किया जा सके। आपको बता दे, कि यह पहली बार नहीं है जब ओवैसी ने RSS पर निशाना साधा हो। ओवैसी का ऐसे बयान देना तो लाजमी है। हालांकि पहलगाम आतंकी हमले के बाद ओवैसी ने चुप्पी जरूर साध रखी थी। ऐसे में, ये बयानबाज़ी केवल राजनीतिक प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि देश में मुसलमानों की भागीदारी, सुरक्षा और पहचान को लेकर एक गंभीर बहस की मांग है। अब देखने वाली बात ये होगी कि विपक्ष, सरकार और खुद RSS इस चुनौती का किस तरह से जवाब देते हैं! और क्या असल में कोई बदलाव आता है, या फिर ये सिर्फ बयानों का सिलसिला बनकर रह जाएगा?