विवाह संबंधी कानूनी प्रक्रियाएं सरल होंगी या जटिल?

   विवाह संबंधी कानूनी प्रक्रियाएं सरल होंगी या जटिल?

समान नागरिक संहिता (यूसीसी) व्यक्तिगत अधिकारों के संरक्षण को प्राथमिकता देती है और विवाह, तलाक, उत्तराधिकार और सहजीवन (लिव-इन) संबंध सहित अन्य कानूनों को नियंत्रित करती है। हम आपको बता दें कि धर्म से परे उत्तराखंड के सभी निवासियों पर लागू समान नागरिक संहिता अधिनियम, 2024 में बहुविवाह और बाल विवाह पर भी प्रतिबंध लगाया गया है। यह अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 342 और 366 (25) के तहत अधिसूचित अनुसूचित जनजातियों और पार्ट-21 के तहत संरक्षित व्यक्तियों और समुदायों पर लागू नहीं होगा। यूसीसी के मुख्य प्रावधानों और उद्देश्यों में विवाह से संबंधित कानूनी प्रक्रियाओं को सरल, सुव्यवस्थित और पारदर्शी बनाना शामिल है।

देखा जाये तो कुल मिलाकर यह कानून व्यक्तिगत अधिकारों के संरक्षण को सुनिश्चित करते हुए सामाजिक सौहाद्र को बढ़ावा देता है। मगर मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने इसको भेदभावपूर्ण और पूर्वाग्रह पर आधारित बताते हुए कहा है कि इसे शीर्ष अदालत में चुनौती दी जाएगी। जमीयत के दोनों समूहों ने अलग-अलग बयान जारी कर कहा है कि समान नागरिक संहिता संविधान में मौजूद धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ है तथा यह मुसलमानों को “किसी भी हालत में स्वीकार्य नहीं है।” देखना होगा कि शीर्ष अदालत में जब इस कानून को लेकर सुनवाई होगी तो क्या कुछ निकल कर आता है। लेकिन इतना तो है ही कि उत्तराखंड ने देशभर में यूसीसी की जरूरत को लेकर एक चर्चा शुरू कर दी है। चर्चा इस बात पर भी हो रही है कि उत्तराखंड का यूसीसी कानून कितना प्रभावी है या इसमें कौन-सी बातें शामिल होने से रह गयी हैं। इस मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता और भारत के पीआईएल मैन के रूप में विख्यात अश्विनी उपाध्याय ने कहा है कि पांच बड़े मुद्दे इस कानून में शामिल होने से रह गये हैं इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चाहिए कि वह उत्तराखंड को बचाने के लिए इन पांच मुद्दों को भी राज्य के यूसीसी में शामिल कराएं।

उत्तराखंड का कानून व्यक्तिगत अधिकारों के संरक्षण को सुनिश्चित करते हुए सामाजिक सौहाद्र को बढ़ावा देता है। इसमें विवाह के लिए पात्रता मानदंड यह है कि दोनों पक्षों में से किसी का भी जीवित जीवनसाथी नहीं होना चाहिए। विवाह और तलाक से संबंधित यूसीसी के अध्याय एक में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि अगर एक पुरुष और एक महिला की आयु विवाह योग्य है और विवाह के समय दोनों में से किसी का भी जीवित जीवनसाथी नहीं है तो उनके बीच विवाह संपन्न हो सकता है। इसमें कहा गया है कि दोनों मानसिक रूप से स्वस्थ तथा शादी के लिए सहमति देने में सक्षम होने चाहिए। यूसीसी के अनुसार, पुरुष के लिए विवाह की न्यूनतम आयु 21 वर्ष और महिला की 18 वर्ष होनी चाहिए। यूसीसी में 60 दिनों के भीतर विवाह को पंजीकृत कराना अनिवार्य किया गया है। हालांकि, इसमें यह भी कहा गया है कि केवल पंजीकरण न होने के कारण विवाह को अमान्य नहीं माना जाएगा।

इसमें कहा गया है कि 26 मार्च 2010 से लेकर अधिनियम के लागू होने तक हुई शादियों को छह माह के भीतर पंजीकृत कराना होगा। 26 मार्च 2010 से पहले हुए विवाहों को भी पंजीकृत कराया जा सकता है, लेकिन यह अनिवार्य नहीं है। जो व्यक्ति पहले ही नियमानुसार अपने विवाह का पंजीकरण करा चुके हैं, उन्हें दोबारा पंजीकरण कराने की जरूरत नहीं है। विवाह का पंजीकरण ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों माध्यम से किया जा सकता है। यूसीसी के तहत, पंजीकरण के लिए आवेदन किए जाने के 15 दिन के भीतर सब-रजिस्ट्रार को उस पर निर्णय लेना होगा और अगर इस अवधि में निर्णय नहीं लिया गया तो यह आवेदन स्वत: ही रजिस्ट्रार के पास पहुंच जाएगा। अगर कोई आवेदन रद्द किया जाता है तो उसके लिए पारदर्शी अपील प्रक्रिया होगी। इसके अलावा, झूठी सूचना देने पर जुर्माने का भी प्रावधान है। राज्य सरकार विवाह पंजीकरण की प्रक्रिया की निगरानी और क्रियान्वयन के लिए सब रजिस्ट्रार, रजिस्ट्रार और रजिस्ट्रार जनरल की नियुक्ति करेगी।

यूसीसी न केवल विवाह प्रक्रिया को सरल बनाता है बल्कि इसे ज्यादा पारदर्शी और जनता के अनुकूल भी बनाता है। यह वसीयत और कोडिसिल (वसीयतनामा उत्तराधिकार) को तैयार करने तथा उसे निरस्त करने के लिए एक सुव्यवस्थित ढांचा प्रदान करता है। इस अधिनियम में वसीयत से संबंधित विभिन्न पहलुओं के बारे में विस्तार से चर्चा की गयी है। राज्य में सशस्त्र बलों के उत्कृष्ट योगदान देने की परंपरा को देखते हुए अधिनियम में ‘प्रिविलेज्ड वसीयत’ का प्रावधान है जिसके अनुसार सक्रिय सेवा या तैनाती पर रहने वाले सैनिक, वायुसैनिक या नौसैनिक अपनी वसीयत को सरल और लचीले नियमों के तहत भी तैयार कर सकते हैं-चाहे वह हस्तलिखित हो, मौखिक रूप से निर्देशित की गई हो, या गवाहों के समक्ष शब्दशः प्रस्तुत की गई हो। इस प्रावधान का मूल उद्देश्य यह है कि कठिन व उच्च-जोखिम वाली परिस्थितियों में तैनात सैनिक भी अपनी संपत्ति-संबंधी इच्छाओं को प्रभावी ढंग से दर्ज करा सकें। उदाहरण के लिए, अगर कोई सैनिक स्वयं अपने हाथ से वसीयत लिखता है, तो उसके लिए हस्ताक्षर या साक्ष्य (अटेस्टेशन) की औपचारिकता आवश्यक नहीं होगी, बशर्ते यह स्पष्ट हो कि वह दस्तावेज उसी की इच्छा से तैयार किया गया है।

 

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