क्या बंगाली भाषी मुस्लिमों को सचमुच बनाया जा रहा निशाना ? क्या है ओवैसी के दावों की पूरी सच्चाई!

क्या बंगाली भाषी मुस्लिमों को सचमुच बनाया जा रहा निशाना ? क्या है ओवैसी के दावों की पूरी सच्चाई!

हैदराबाद- AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने हाल ही में एक बड़ा दावा किया है कि भाजपा शासित राज्यों में बंगाली भाषी मुस्लिमों को अवैध रूप से गिरफ्तार किया जा रहा है और बंदूक की नोंक पर बांग्लादेश भेजा जा रहा है। लेकिन क्या यह सच है? या फिर इसके पीछे कोई और कहानी है? दरअसल 26 जुलाई, 2025 को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में ओवैसी ने आरोप लगाया कि भाजपा शासित राज्यों में पुलिस बंगाली भाषी मुस्लिमों को टारगेट कर रही है। ओवैसी का कहना है कि इन लोगों को बिना किसी सबूत के 'अवैध प्रवासी' घोषित किया जा रहा है, भले ही उनके पास आधार कार्ड और वोटर आईडी जैसे दस्तावेज हों।

ओवैसी ने खास तौर पर असम और हरियाणा का जिक्र किया, जहां लोगों को हिरासत में लेकर "होल्डिंग सेंटर्स" में रखा जा रहा है और फिर बांग्लादेश की सीमा पर धकेल दिया जा रहा है। ओवैसी ने एक सबूत के तौर पर गुरुग्राम जिला मजिस्ट्रेट के एक आदेश की तस्वीर भी शेयर की, जिसमें बांग्लादेशी नागरिकों और रोहिंग्याओं के निर्वासन की बात थी। उनका कहना है कि पुलिस सिर्फ भाषा के आधार पर लोगों को पकड़ रही है, जो गैरकानूनी है। लेकिन सवाल यह है - क्या सचमुच ऐसा हो रहा है? तो वहीं ओवैसी के दावों के मुताबिक, यह सब मुख्य रूप से असम और हरियाणा में हो रहा है। 

असम में पहले से ही NRC यानी नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स को लेकर विवाद चल रहा है, जहां 19 लाख से ज्यादा लोग अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाए थे। वहीं हरियाणा के गुरुग्राम में 19 जुलाई, 2025 को पुलिस ने 74 मजदूरों को हिरासत में लिया, जिनमें ज्यादातर बंगाली भाषी थे। इनमें से कुछ असम से थे, कुछ पश्चिम बंगाल से। इन्हें 'होल्डिंग सेंटर' में रखा गया, जहां हालात को मानवाधिकार संगठनों ने 'अमानवीय' बताया है। साथ ही कुछ रिपोर्ट्स में यह भी कहा गया कि झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले गरीब मजदूरों को खास तौर पर निशाना बनाया जा रहा है, क्योंकि वे पुलिस के खिलाफ आवाज नहीं उठा सकते। लेकिन क्या यह सचमुच भेदभाव है, या फिर अवैध प्रवासियों पर कार्रवाई का हिस्सा?

बात करते हैं कानूनी पक्ष की। भारत में 1946 का विदेशी अधिनियम सरकार को यह अधिकार देता है कि वह अवैध प्रवासियों को देश से बाहर कर सकती है। लेकिन इसके लिए कुछ नियम हैं- जैसे कि हर शख्स को अपनी बात रखने का मौका मिलना चाहिए, अपील का अधिकार होना चाहिए, और कानूनी प्रक्रिया का पालन होना चाहिए। ओवैसी का दावा है कि ये नियम तोड़े जा रहे हैं। उनका कहना है कि बिना सुनवाई के लोगों को हिरासत में लिया जा रहा है और सीधे बांग्लादेश भेजा जा रहा है।

दूसरी तरफ, सरकार का कहना है कि यह सब कानून के दायरे में हो रहा है। इस मामले में मानवाधिकार संगठनों ने भी अपनी चिंता जताई है। ह्यूमन राइट्स वॉच की 24 जुलाई, 2025 की रिपोर्ट में कहा गया कि सैकड़ों बंगाली भाषी मुस्लिमों को बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के बांग्लादेश भेजा गया है। उनका मानना है कि यह मुस्लिमों के खिलाफ भेदभाव को दिखाता है। इसके अलावा, नागरिकों के लिए न्याय और शांति (CJP) ने असम में हुए निर्वासनों के खिलाफ NHRC को शिकायत दी है। उनकी रिपोर्ट में कहा गया कि बच्चों, महिलाओं और बीमार लोगों को भी बिना सुनवाई के सीमा पर धकेला गया। यह सुनकर सवाल उठता है कि क्या सचमुच मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है?

हालाँकि अब तक भाजपा ने ओवैसी के इन खास आरोपों का सीधा जवाब नहीं दिया है। लेकिन असम की भाजपा सरकार ने कहा है कि वे अवैध अतिक्रमण और प्रवासियों के खिलाफ कार्रवाई कर रहे हैं, ताकि स्थानीय लोगों की जमीन को बचाया जा सके। लेकिन यह ओवैसी के दावों को पूरी तरह से कवर नहीं करता। क्या यह सिर्फ राजनीतिक खेल है, या इसके पीछे कोई बड़ी साजिश है?

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Nitin Vishwakarma Picture

Sub Editor 

3 years experience in digital media. Home district Sitapur Uttar Pradesh. Primary education Saraswati Vidya Mandir Sitapur. Graduation Lucknow University.

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