भारत-बांग्लादेश संबंधों में अचानक खटास: दो दिनों में मित्रता से तनाव तक का सफर
दो दिन पहले ही विजय दिवस पर ऐतिहासिक मित्रता का जश्न मनाया
शरीफ उस्मान हादी की मौत के बाद बांगलादेश में भड़की हिंसा
भारत और बांग्लादेश के बीच संबंधों में महज 48 घंटों में नाटकीय बदलाव देखने को मिला है। जहां मंगलवार को विजय दिवस के मौके पर दोनों देशों की ऐतिहासिक मित्रता का जश्न मनाया गया, वहीं बुधवार से तनावपूर्ण बयानबाजी और राजनयिक तलब की घटनाओं ने रिश्तों को तनावग्रस्त बना दिया है। इस बदलाव की मुख्य वजह बांग्लादेश में छात्र नेता शरीफ उस्मान हादी की मौत के बाद भड़की हिंसा और कुछ बांग्लादेशी नेताओं के भारत विरोधी बयान हैं।
बांग्लादेश के इंकलाब मंच के प्रमुख नेता और कट्टर भारत विरोधी माने जाने वाले शरीफ उस्मान हादी की सिंगापुर में इलाज के दौरान मौत हो गई। वे पिछले हफ्ते ढाका में गोली लगने से गंभीर रूप से घायल हो गए थे। उनकी मौत की खबर फैलते ही ढाका सहित कई शहरों में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन शुरू हो गए। प्रदर्शनकारियों ने दो प्रमुख अखबारों के दफ्तरों पर हमला किया, तोड़फोड़ की और आग लगाई। चटगांव में भारतीय सहायक उच्चायोग पर पत्थरबाजी हुई, जबकि ढाका में भारतीय उच्चायोग की ओर मार्च की कोशिश की गई। कई जगहों पर भारत विरोधी नारे लगे और प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया कि हादी के हमलावर भारत भाग गए हैं।
इस बीच, बांग्लादेश की नेशनल सिटिजन पार्टी (एनसीपी) के दक्षिणी क्षेत्र के प्रमुख आयोजक हसनत अब्दुल्लाह ने विवादित बयान दिया कि यदि बांग्लादेश को अस्थिर करने की कोशिश की गई तो भारत के पूर्वोत्तर राज्यों 'सेवन सिस्टर्स' को अलग-थलग कर दिया जाएगा और अलगाववादी ताकतों को शरण दी जाएगी। इस बयान की भारत ने कड़ी निंदा की और बांग्लादेशी उच्चायुक्त को तलब कर भारतीय मिशनों की सुरक्षा पर चिंता जताई।
बांग्लादेश के विदेश मामलों के सलाहकार मोहम्मद तौहीद हुसैन ने भी भारत पर 1971 के मुक्ति संग्राम में बांग्लादेश के योगदान को कम आंकने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि बांग्लादेशी स्वतंत्रता सेनानियों के बिना जीत संभव नहीं थी।
दूसरी ओर, मंगलवार को दिल्ली के चाणक्यपुरी में बांग्लादेश उच्चायोग में विजय दिवस समारोह आयोजित किया गया था, जिसमें भारतीय सेना के अधिकारी, पूर्व राजनयिक, थिंक टैंक विशेषज्ञ और पत्रकार शामिल हुए। बांग्लादेशी उच्चायुक्त रियाज हामिदुल्लाह ने भारत के साथ संबंधों को 'गहरा और बहुआयामी' बताया और 1971 में बलिदान देने वाले भारतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि दी। लेकिन अगले ही दिन भारतीय विदेश मंत्रालय ने उन्हें तलब कर बांग्लादेश में बढ़ते चरमपंथ और भारतीय उच्चायोग की सुरक्षा पर चिंता व्यक्त की।
पिछले डेढ़ साल में मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार के सत्ता में आने के बाद दोनों देशों के बीच उच्चायुक्तों को बार-बार तलब करने और आरोप-प्रत्यारोप की घटनाएं बढ़ी हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि बांग्लादेश में बढ़ता कट्टरपंथ और भारत विरोधी भावना दक्षिण एशिया की स्थिरता के लिए चुनौती बन रही है।
