गाजा में मासूमों की चीखें; एक साल की जंग, लाखों सपनों का खात्मा !
अम्मा कहती थीं! गोलियां मज़हब नहीं देखती! लेकिन उस मासूम बच्ची को ये कहा पता था! जिसका सपना था की मैं डॉक्टर बनूँगी! एक दिन धूल में मिलता है लिपटा एक टूटा हुआ स्कूल बैग! पास ही एक जली हुई किताब जिसमें अब भी लिखा था- "मैं डॉक्टर बनूंगी। 8 साल की लैला का सपना अब उस मलबे के नीचे दबा पड़ा है, जिस पर उसका नाम भी अब पहचान में नहीं आता! अम्मा उसे हर सुबह स्कूल भेजती थीं! कहती थी बेटी 'पढ़-लिखकर खूब नाम रोशन करना!, गोलियों से नहीं लड़ना! लेकिन 7 अक्टूबर 2023 की सुबह का सूरज अभी निकला ही था कि ग़ाज़ा और इज़राइल के बीच एक ऐसी आग भड़क गई जिसने हज़ारों घरों को राख में तब्दील कर दिया! लैला के अब्बू, जो कभी एक फूलों की दुकान चलाते थे, अब दो वक्त की रोटी के लिए लाइन में खड़े हैं!
उसी UN कैंप के बाहर, जहाँ एक वक्त वो फूल बेचा करते थे! उस दिन जब पहला धमाका हुआ! तब लैला की मां ने उसे अपनी बाहों में कसकर छुपा लिया! माँ बोली मत डरो! अल्लाह सब देख रहा है! लेकिन अल्लाह तो बस देखता रह गया! और माँ वहीं मर गईं! बच्ची की आँखों में वो आख़िरी पल अपनी माँ के द्वारा बोले आखिरी अल्फाज अब एक शोर की तरह उसमे कैद हो गए! जब ऐसा धमाका हुआ! तो मौके पर पुलिस प्रशासन, एम्बुलेंस और पत्रकार सभी पहुंचते है! पुलिस वहां के हालत संभालने में लगती है! तो वही प्रशासन एम्बुलेंस के माध्यम से घयलो को अस्पताल पहुंचाने में लगा होता है! सब कुछ एक दम सेकंडों में खत्म हो जाता है! जिनके घरो में कभी किलकारियां गुँजती थी! वहा मातम की स्तिथि हो गई थी! उसी वक़्त वहा मौजूद एक पत्रकार के कैमरे में कैद होती है!
एक दिल को खुरेद कर रख देने वाली फुटेज! उस 13 सेकंड की फुटेज में एक बच्चा, खून से सना हुआ, चुपचाप अपनी बहन को गोद में उठाकर दौड़ रहा है! वो ना तो रो रहा था, ना चीख रहा था! शायद आंसुओं की भी एक सीमा होती है! उसका चेहरा वायरल हो गया था! लेकिन उसके नाम से कोई वाकिफ़ नहीं था! दुनिया अब भी पूछती है! "यह किसका बच्चा था? इस युद्ध की चिंगारी कोई अचानक नहीं थी! ये आग वर्षों से सुलग रही थी! ज़मीन के बंटवारे से! वजूद के सवाल से! इंसाफ की तलाश से! उस दिन हमास ने इज़राइल पर रॉकेट्स और ज़मीनी हमलों की अभूतपूर्व कार्रवाई की! बिलकुल अचानक! बच्चों की स्कूल बसें! आम लोग त्योहार मना रहे नागरिक सब निशाने पर थे! 1,200 से ज्यादा इज़राइली मारे गए! सैकड़ों को बंधक बना लिया गया!
इसके बाद जो हुआ! वो इतिहास में दर्ज है! इज़राइल ने पूरे ग़ाज़ा पट्टी को जंग का मैदान बना डाला! बमबारी! तबाही! चीखें और मलबे में दबे लोग! आज 50,000 से ज्यादा फिलिस्तीनी मारे जा चुके हैं! जिनमें आधे से ज़्यादा महिलाएं और बच्चे शामिल हैं! 113,000 घायल, 11,000 लापता, 36 में से 19 अस्पताल तबाह! हर आंकड़ा एक कहानी है! हर नाम एक सपना था! और हर सपना अब मलबे में दफ्न है! लेकिन सवाल ये है ये युद्ध क्यों हुआ! ये लड़ाई सिर्फ हमास और इज़राइल के बीच नहीं है! ये लड़ाई है! एक बंटे हुए वजूद की! ज़मीन के हक की! उस आवाज़ की जिसे दशकों से दबाया गया! 1948 में जब इज़राइल बना! तब लाखों फिलिस्तीनियों को बेघर किया गया! वो जख्म आज तक रिस रहा है! और इसी दर्द ने हमास जैसे उग्र संगठनों को जन्म दिया!
अब दुनिया देख रही है! ग़ाज़ा में हर दिन मौत का नया आंकड़ा! लेकिन न कोई हल न कोई ठोस शांति योजना! ग़ाज़ा आज युद्ध नहीं लड़ रहा वो अपना वजूद बचाने की लड़ाई भी लड़ रहा है! क्या इंसाफ सिर्फ ताकतवर के हिस्से में आएगा या कभी मासूमों की चीखें भी सुनी जाएंगी! ये युद्ध आखिर कब रुकेगा! इसका जवाब आज भी पूरी दुनिया तलाश रही है! गाजा अब एक जगह का नाम नहीं, एक दर्द की कहानी बन गई है!
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Sub Editor
3 years experience in digital media. Home district Sitapur Uttar Pradesh. Primary education Saraswati Vidya Mandir Sitapur. Graduation Lucknow University.